बिरसा मुंडा आत्मकथा | Birsa munda Biography In Hindi | Divya-Article

बिरसा मुंडा आत्मकथा | बिरसा  मुंडा की जीवनी | बिरसा  मुंडा का जीवन परिचय | Birsa Munda Biography In Hindi



कौन थे ये भगवान बिरसा मुंडा | स्वतंत्रता सेनानी-बिरसा मुंडा : 


बिरसा मुंडा एक आदिवासी आंदोलनकारी नेता  थे , जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन के लिए एक दल का गठन किया , जिसका नेतृत्व उन्होंने स्वयं किया और सभी लोगों को अंग्रेजों के शासन के बारे में जागरूक किया और 25 वर्ष की अल्पायु में ही उन्होंने भगवान का दर्जा प्राप्त कर लिया। 

  • मुंडा जनजाति उन्हें आज भी भगवान मानती है। 
Birsa munda aatmakatha
Birsa munda Biography In Hindi





 आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से विषय - Birsa munda Biography In Hindi के बारे में विस्तार से हिंदी में जानेंगे और समझेंगे . कौन थे ये बिरसा मुंडा ? Birsa Munda Biography | बिरसा मुंडा जीवनी | Birsa Munda History | बिरसा मुंडा का इतिहास |  Birsa Munda के सम्मान में किये गए कार्य ,  Birsa Munda के मृत्यु का कारण ,  Birsa Munda का प्रसिद्ध नारा ,आदि। 
 
आज हम अपने इस आर्टिकल में ऊपर बताये गए सभी विषयो के बारे में जानेंगे , कृपया आर्टिकल पूरा व ध्यान से पढ़े। 


बिरसा मुंडा आत्मकथा | Birsa Munda Biography | बिरसा मुंडा जीवनी : 


बिरसा  मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1975  को बिहार के दक्षिणी भाग वर्तमान समय में झारखंड के रांची जिले में छोटे से गांव- उलिहातू  में हुआ था। 

उनके माता का नाम - कर्मी हाटु मुंडा  और उनके पिता का नाम - सुगना मुंडा  था और यह एक गरीब आदिवासी  परिवार से संबंध रखते थे। 

यह झारखंड की मुंडा जनजाति  से संबंध रखते  थे  जो कि अपने दैनिक दिनचर्या के लिए जंगलो पर निर्भर  रहते थे  और इन  जनजाति का मुख्य पेशा भेड़ , बकरियों  का पालन ,  घास व लकड़ियों को काटना , व खेती करना आदि। 

ये सभी पूर्ण रूप से जंगलो पर ही निर्भर रहते थे। 

नोट : ऐसा बताया जाता है कि बृहस्पतिवार को इनका जन्म होने के कारण ही इनका नाम - बिरसा पड़ा और मुंडा इनकी जनजाति थी इसीलिए इनका नाम- बिरसा मुंडा  पड़ा। 


Birsa Munda History | बिरसा मुंडा का इतिहास : 

Birsa munda Biography In Hindi
Birsa munda Biography In Hindi



बिरसा मुंडा जी का बचपन : 

बिरसा मुंडा बचपन से ही मेधावी बालक रहे और बचपन से ही उनका वन , जंगल और वनस्पतियों से विशेष प्रकार  का लगाव  था और वह अपनी मुंडा जनजातियों  के लिए भी बहुत स्नेह व सम्मान  रखते थे। 

बचपन में उनका भेड़ , बकरियों को जंगलो में चराना , बांसुरी बजाना , गीत गाना उनका शौक था। 

बिरसा मुंडा जी की शिक्षा  :

जब वे  8 या  9 साल के हुए , तब उनको  उनके मामा के घर पढ़ने के लिए  भेज दिया गया , जहां उन्होंने अपनी  प्राथमिक शिक्षा पूरी की और उसके बाद उनको आगे की शिक्षा के लिए क्रिश्चियन मिशनरी में भेजा गया। 

वहाँ  की यह व्यवस्था थी  कि दुसरे जाति व वर्ग के  बच्चो को शिक्षा नहीं दी जाएगी ,तब उन्होंने क्रिश्चियन मिशनरी में दाखिला लेने के लिए अपना नाम बदल कर दाखिला ले लिए। जहा उनका नाम-बिरसा डेविड रखा गया। 

वह पर कुछ ही दिनों पढ़ने के बाद उन्हें समझ आया कि कैसे अँगरेज़ लोगो का जाति परिवर्तन कर रहे है ,   और सबको क्रिस्चियन बना रहे है ,  और साथ ही अन्य लोगो के साथ अच्छा व्यव्हार नहीं रखते  , साथ ही उन्हें अंग्रेजो की रणनीति भी समझ आ गयी तो उन्होंने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ कर अपने गांव उलिहातू आ गए। 

बिरसा मुंडा जी  का जीवन संघर्ष   :

जब वे अपने गांव - उलिहातू लौटे तो उन्होंने पाया की यहाँ अंग्रेजों  ने कोई नया वन अधिनियम लागू  किया था , जिसके अंतर्गत अब कोई भी आदिवासी न ही जंगलो में रहेगा और न ही उसके किसी भी उत्पाद का प्रयोग करेगए। इस कानून के आधार पर सभी आदिवासी को जंगल  के किसी भी वास्तु का प्रयोग वर्जित  था। 

 और साथ ही उन्हें जंगलों  में से भी निकला  जा रहा था , और जंगलो  में जगह जगह पर पुलिस चौकी बनाई  जा रही  थी जिससे जनजातियों के क्रियाकलापों पर  पूर्ण रूप से निगरानी राखी जा सके। 

इस तरह उन्होंने पाया कि अंग्रेज़ उनके  दैनिक दिनचार्य के श्रोतो पर भी प्रतिबन्ध लगा रहे हैं तो उन्हें  समझ आया कि लोगों को अंग्रेजो के  खिलाफ एकजुट होकर विद्रोह करना चाहिए। 

 बिरसा मुंडा जी  ने लोगो को एकजुट  कैसे किया  :

 तब उन्होंने देखा  की उनके समुदाय  के लोग  अंधभक्त व अंधविश्वाशी है , और वे देवी देवताओ में ज्यादा भक्ति व  विश्वास रखते है इसीलिए उन्होंने  निर्णय लिया की हम अपने सभी समुदाय के  लोगों को अंग्रेजी सरकार के खिलाफ खड़ा करेंगे। 

तब उन्होंने  स्वयं को  धरती याबा - ( अर्थात  धरती के देवता )के रूप में घोषित कर दिया और उसी  समय में कुछ अफवाहों को भी हवा मिल गयी कि बिरसा में कुछ विलक्षण प्रकार की शक्तिया है जिससे  वह अंग्रेज़ो  की गोलियों को पानी कर सकता है. 

उस समय में फैली बीमारिया ( जैसे - चेचक , हैज़ा ) जिससे गांव के गांव साफ़ हो जाते थे क्योकि उस समय में औषधि व दवाई नहीं होती थी लेकिन   मुंडा जी ने  लोगों को  स्वच्छता व सफाई  के प्रति जागरूक करके काफी लोगो  को ठीक किया,

जिससे लोगो का उनपर विश्वास बढ़ने लगा लोग उन्हें सच में भगवान् मानने लगे और उनसे मिलने व उनको सुनने के लिए भीड़ उमड़ने लगी , और लोग उन्हें सिंग बोगा का दूत  अर्थात भगवान का दूत  मानने लगे और उन्हें पूजना शुरू कर दिए। 

 बिरसा मुंडा जी  का  विद्रोह   :

बिरसा  मुंडा जी अपने भाषण के माध्यम से लोगो को अंग्रेज़ो की रणनीति , साहूकारों व जम्मीदारो के दाव , आदि के बारे में जागरूक करना शुरू किया और साथ ही उनको बताया की उन्हें अपनी व अपने जनजातियों व समुदाय की सुरक्षा स्वम ही करनी होगी और उन्हें अंग्रेज़ो के खिलाफ एक विश्व विद्रोह करना होगा। 

धीरे धीरे उनके अनुव्याययो की संख्या बढ़ने लगी तब उन्होंने उसको एक दल में परिवर्तित कर दिया जिसको नाम दिया गया - बिऱसाइट।  

फिर 1895 में ज़म्मीदारी प्रथा , राजस्व व्यवस्था , जंगलो व जमीनों पर अधिकार की लड़ाई छेड़ दी और सूत देने  महाजनो पर भी विद्रोह छेड़ दिया , जिसके बाद यह विद्रोह एक प्रचंड विद्रोह का रूप ले लिया , धीरे ही धीरे पूरा छोटानागपुर जंगलो पर अपनी दावेदारी के लिए एकजुट हो गया। 

सभी विद्रोहियों ने अंग्रेजी सर्कार के नाक में दम कर दिया था और दिसंबर 1899 में एक युद्ध होता है , बिर साइट और अंग्रेजी सरकार के पुलिस कर्मियों के बीच जिसमे दलाल ,पुलिस कर्मी , अंग्रेजी शासको को मारा जाता है। 

 बिरसा मुंडा जी  की  गिरफ्तारी  :

 अंत में अंग्रेज़ो ने बिरसा मुंडा जी पर 500 रु का इनाम रखती है , की जो कोई भी बिरसा मुंडा को पकड़वाए गए उसे 500 रु इनाम के तौर पर दिया जाये गए , तो उनके ही एक नज़दीकी ने लालच में आकर उसने उनका पता अंग्रेज़ो को दे दिया। 

वे उस दिन वे चक्रधरपुर में  अपने दल को सम्बोधित  कर रहे थे , तभी अंग्रेजी पुलिस ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया और काफी देर के चले युद्ध के बाद बिरसा मुंडा को 3 मार्च 1900 को अंग्रेजो द्वारा गिरफ्तार कर लिया जाता  है , और उन्हें कारावास में डाल दिया जाता है , जहा उन्हें बहुत प्रताड़ना सहना पड़ता है और अंत में 9 जून 1900 को वीर गति को प्राप्त हो जाते है। 

 बिरसा मुंडा जी  की  मृत्यु का कारण  :

 चक्रधर पुर से गिरफ्तार करने के बाद उन्हें कारागार में डाल दिया जाता है और उन्हें वहाँ बहुत जुल्म सहने पड़ते है और अंत में कारागार में ही उनकी मृत्यु हो जाती है।  

नोट : उनके मृत्यु का कारण धीमा जहर माना जाता है , जो उन्हें अंग्रेजो के माध्यम दिया जाता था। 


बिरसा मुंडा जी  के सम्मान में किये गए कार्य  :

  • यह एक मात्र आदिवासी नेता  है  जिनकी फोटो संसद में लगी है। 
  • मुंडा जनजाति आज भी इन्हे भगवान् मानती है और इनके जन्म दिवस को बलिदान दिवस के रूप में मनाती है। 
  • भगवान् बिरसा मुंडा के सम्मान में रांची में इनके नाम पर एक हवाई अड्डा बनाया गया है जिसका नाम - BIRSA MUNDA AIRPORT , HINOO , RANCHI, JHARKHAND .
  • भगवान् बिरसा मुंडा के सम्मान में उड़ीसा  में इनके नाम पर एक स्टेडियम  बनाया गया है जिसका नाम -BIRSA MUNDA  INTERNATIONAL HOCKEY STADIUM , ROURKELA , ODISHA , INDIA 
  • भगवान् बिरसा मुंडा के सम्मान में रांची  में इनके नाम पर एक स्टेडियम  बनाया गया है जिसका नाम -BIRSA MUNDA ATHELATICS STADIUM , RANCHI , JHARKHAND .
  • इनके योगदान को देखते हुए दक्षिड़ी बिहार को अलग कर इनके ही जन्म दिवस के उपलक्ष पर वर्ष 2000 को नया राज्य - झारखण्ड बना दिया गया। 

बिरसा मुंडा जी द्वारा लगाए गए नारे : 

  1. उलगुलान 
  2. अबुआ दिशुम ... ...... अबुआ राज।   

Conclusion : 

आशा करता हु , आपको पूरा आर्टिकल पढ़ने के बाद बिरसा मुंडा जी के योगदान के बारे में पता चला होगा और आपको उनके इतिहास के प्रमुख पहलुओं को जानने का मौका मिला होगा। 

  धन्यवाद !!!

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.