जीरो बजट फार्मिंग | जीरो बजट फार्मिंग के 4 स्तम्भ , लाभ , सिद्धांत | Zero Budget Farming In Hindi |
दोस्तों , आप जानते होंगे की भारत एक कृषि प्रधान देश है और यहाँ पर ज्यादा से ज्यादा किसानो की अर्थव्यवस्था कृषि यानी खेती पर निर्भर है।
क्या आपने zero budget farming के बारे में सुना है ?? आपको पता होगा कि किसान एक ऐसा वर्ग है जो सबकी खाद्य सम्बंधित जरूरतों को पूरा करता है और बढ़ती महगाई और तकनीकीकरण के चलते वे पीछे होते जा रहे है जिससे उनकी दशा अर्थव्यवस्था और भी ज्यादा खराब होती जा रही है।
आज खेती में लगने वाला लागत का मूल्य इतना ज्यादा है की ज्यादातर लोग इसे पूरा करने के लिए कर्ज तक लेना पद जाता है , और समय पर न पैसे वापस करने पर वे बड़े कर्जदार बनजाते है और वे एक ऐसे कर्ज के जाल में फस जाते है की निकल ही नहीं पाते , और अंत में वे आत्महत्या कर लेते है।
zero budget farming in hindi |
तो ऐसे ही मुसीबत को झेलते हुए महाराष्ट्र के एक किसान - सुभाष पालेकर जी , जो कि भूतपूर्व कृषि उन्होंने किसानो और पर्यावरण को होने वाली परेशानियों का तोड़ निकला है , जिसे उन्होंने zero budget farming का नाम दिया है ,
तो आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से जीरो बजट फार्मिंग के बारे में पूरी जानकारी लगे , जो की आपके लिए जानना बहुत जरूरी है और फायदेमंद भी , इससे किसानो और पर्यावरण दोनों का भला होगा।
Zero Budget Farming In Hindi | जीरो बजट फार्मिंग इन हिंदी |
- यह खेती सर्व प्रथम महाराष्ट्र के एक किसान सुभाष पालेकर जी द्वारा प्रयोग में लाई गयी थी और आज ये कई राज्यों में कारगर साबित हुई है और साथ ही इसको बड़ी मात्रा में बढ़ावा भी दिया जा रहा है।
यह विधि पूर्ण रूप से पर्यावरण संरक्षक का काम करेगी। इसमें किसी कीटनाशक , रसायनिक खाद आदि का प्रयोग बिल्कुल भी नहीं किया गया है और इसे हम रसायन मुक्त खेती भी कह सकते हैं।
इसमें न तो खेत की जुताई करनी है और न ही गहन सिचाई आदि सब नहीं करना है। कुछ भी आपको नहीं करना है जिससे आप की लागत ना के बराबर हो जाएगी और इसलिए इसे zero budget farming कहा जाता है।
Zero Budget farming पर सुभाष पालेकर जी के कथन का सार :
- उनका कहना है कि यह एकमात्र ऐसी खेती करने का तरीका है जिससे किसानों की स्थिति सुधर सकती है , इसमें किसानों की आय 1.5 गुना से 2 गुना तक बढ़ सकती है।
- वे कहते हैं कि खेत में सभी जरूरत के पोषक तत्त्व पहले से ही मौजूद है , उन्हें पौधों तक पहुंचाने वाले सूक्ष्म जीवाणु व मित्रवत सूक्ष्मजीव नहीं होते हैं जिससे फसलों में तत्वों की कमी से फसल कमजोर हो जाती है और पूर्ण रूप से विकाश नहीं कर पाती और बीमारियों से ग्रसित होने की सम्भावना भी बढ़ जाती है।
- तो हमे बस देशी गाय के गोबर व गौ मूत्र से सिर्फ उन्हीं जीवाणुओं को सक्रिय करना है , बाकी वह फसल में जरूरी तत्व पहुंच जायेगा।
- आपको अपने से कुछ भी तैयार करने की जरूरत नहीं है न ही कंपोस्ट पिट , वर्मी कंपोस्ट, न कोई और भी किसी तरह की खाद तैयार करने की जरूरत है।
- बस आपके पास एक देशी गाय होनी चाहिए और उसी के गोबर व मूत्र से उर्वरक के रूप में प्रयोग करके 30 एकड़ की खेती की जा सकती है।
Zero Budget farming के लाभ :
- इस कृषि की विधि से किसानो की आय व उत्पादन में वृद्धि होगी।
- जब किसानो की आय बढ़ेगी तो जो किसान कर्ज के जाल में फसे होंगे वे उससे छुटकारा पाएंगे।
- इस विधि में किसी भी प्रकार का पर्यावरण को नुक्सान पहुंचने वाले कोई भी तरीका नहीं प्रयोग किया जाता है तो इससे मृदा संरक्षण को भी बढ़ावा मिलेगा।
- यह विधि सभी कृषि क्षेत्रों के लिए अनुकूल है।
- इससे जैव विविधता( Biodiversity ) बचेगी।
- इस विधि से हमारे प्राकृतिक संसाधन ( भूमि , जल , विद्युत् आदि ) का पूर्ण रूप से प्रयोग होता है।
- उत्पादन रसायन मुक्त होगा जिससे बीमारिया भी कम होंगी।
- इसके उत्पादन स्वस्थ के लिए बेहद अच्छा है।
zero budget farming के 4 स्तम्भ (सुभाष पालेकर जी के कहे अनुसार) :
सुभाष पालेकर जी एक भूतपूर्व वैज्ञानिक है और वे हरित क्रांति के दुष्प्रभाव को देखते हुए उन्होंने स्वयं ही एक नई विधि को विकसित कर दिया जिसमे न ही ज्यादा खर्च आएगा और ऊपर से उत्पादन भी बढ़ेगा तो जिससे किसानों का स्तर सुधरेगा।
zero budget farming in hindi |
Zero Budget Farming के 4 स्तम्भ कुछ इस प्रकार है :
सुभाष पालेकर जी का कहना है कि खेती के शुरुवात के 3 साल ही इस प्रक्रिया को करना है उसके बाद यह स्वयं ही तैयार हो जाएगा।
Jeevamrita / Jeevamruta कैसे तैयार करे ?
एक टैंक में 200 लीटर पानी लें और उसमें 10 किलो देसी गाय का गोबर डालें और 5 से 10 लीटर थोड़ा पुराना गोमूत्र मिलाएं और 2 किलो गुड़ ,2 किलो दाल का आटा और साथ में मिट्टी को सब को मिलाकर अच्छे से पूरे घोल को अच्छे से मिलाएं और 48 घंटे तक रख दें।
अब तैयार है आपका घोल और यह 1 एकड़ में छिड़काव के लिए पर्याप्त है।
इस 48 घंटे के दौरान बैक्टीरिया क्रिया करके अपनी संख्या कई गुना कर लेंगे जिससे अब वह ज्यादा उपयोगी है।
Jeevamrita / Jeevamruta का प्रयोग :
इस गोल का प्रयोग महीने में दो बार सिंचाई के साथ करें और 10 % फाइलर स्प्रे के साथ।
यह घोल पौधों को फंगल व बैक्टीरियल बीमारियों से भी बचाएगा।
इसमें देसी गाय का गोबर प्राकृतिक फंगीसाइड और गोमूत्र , एंटी बैक्टीरियल और मिट्टी को मिलाकर बनाया जाता है।
Beejamrita का प्रयोग :
3. Acchadana/Mulching :
सुभाष पालेकर जी बताते हैं कि मल्चिंग 3 तरीके से की जा सकती है।
- soil mulching : यह तरीका ऊपरी मिट्टी को क्षरण से बचाता है , और मिट्टी में वायु संचारण और पानी रूकने की क्षमता को बढ़ाता है। गहरी जुताई से बचे।
- straw mulching : इसका अर्थ है , मिटटी को biomass waste या फसलों का बचा हुआ भाग (पुवाल या भूसा , आदि ) , सूखे पेड़ पौधों की पत्तियों को खेत में फैला दे और बैक्टीरिया क्रिया करके इनको सड़ायेंगे और humus का निर्माण करेगा और पानी को रोकने की क्षमता भी बढ़ेगी और उपजाऊपन भी बढ़ेगा।
- live mulching : उनका कहना है कि इस विधि में हमे खेत में कई पद्धति अपनानी पड़ेगी (जैसे - मिश्रण खेती या इंटर क्रॉपिंग ) जिससे वे एक-दूसरे की जरूरतों को पूरा कर देंगे और साथ ही एक साथ कोई एक तत्त्व खत्म भी नहीं होगा।
उनका कहना है कि पौधों को गहन सिचाई की कोई आवश्यकता नहीं है , बल्कि उसमें सिर्फ जल वाष्प से उनकी जरूरत पूरी हो जाती है।
वहीं पर हरित क्रांति में गहन सिंचाई से पानी व बिजली और ईंधन का भी नुकसान होता है।
-- वहापसा एक ऐसी अवस्था है जहां हवा और पानी दोनों के अणु मिट्टी में ही उपस्थित रहते हैं
वे कहते हैं कि सिंचाई को कम किया जाए और सिंचाई करे तो सिर्फ दोपहर के बाद ही करें।
Q. क्यों सिर्फ देशी गाय का गोबर ही प्रयोग में लिया जाता है ?
इसका उत्तर : सुभाष पालेकर जी बताते हैं कि भारत में पाई जाने वाली गायों ( वैज्ञानिक नाम - Bos Indicus ) है , उसमे सबसे ज्यादा मात्रा में सूक्ष्म जीवाडु होते है बाकी सभी यूरोपियन गाय की नस्लों की अपेक्षा , इसीलिए इसी गाय के गोबर को प्रयोग में लिया जाता है।
Zero Budget farming के सिद्धांत :
- पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्व का 98% तक का भाग हवा,पानी और सूर्य की रोशनी से पूरा हो जाता है और बचा हुआ लगभग 2% तक की पूर्ती जड़ो के माध्यम से पूरी होती है।
- इस विधि में आपको न कोई रासायनिक उर्वरक, न कीटनाशक , न किसी अन्य प्रकार का तत्त्व का प्रयोग करना है।
- zero budget farming पूरी तरह से 4 स्तम्भों पर टिकी है उनका विशेष ध्यान रखे।
- आप मिटटी की उर्वरकता को बढ़ाने के लिए बाहर से किसी भी उर्वरक का प्रयोग न करे , बस आप खेत में humus और जैविक पदार्थो का ही प्रयोग करे।
- गहन सिचाई बिलकुल भी न करे।
zero budget farming और organic farming में समानता :
- दोनों ही विधि रसायन व जहर मुक्त है , जो की स्वस्थ के लिए अच्छा है।
- दोनों विधिओ में रसायन व कीटनाशक का प्रयोग वर्जित है।
- दोनों ही विधि में बुवाई के लिए घरेलु बीज के उपयोग पर जोर दिया गया है।
- दोनों तरीको में घरेलु कीट नियंत्रण तकनिकी का ही उपयोग बताया गया है।
zero budget farming और organic farming में अंतर :
- ऑर्गेनिक फार्मिंग में उर्वरकता को बढ़ाने के लिए वर्मीकम्पोस्ट या गोबर वाली खाद आदि का प्रयोग किया जाता है जबकि जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग में रसायनिक , न ही जैविक , किसी भी प्रकार का उर्वरक मिट्टी में नहीं मिलाया जाता है।
- आर्गेनिक फार्मिंग ज्यादा महंगा पड़ता है जबकि जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग में लागत बहुत कम लगती है।
- आर्गेनिक फार्मिंग में आपको खेत की जुताई , वाल जैविक उर्वरक व खर पतवार को भी निकालना भी पड़ेगा जबकि , वही पर जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग में आपको कुछ भी नहीं करना है।
- Agniastra : इसको मिर्ची , लहसुन , नीम , व गाय के गोबर को मिला कर बनाया जाता है , इसे कीड़े मकोड़े और कीटो के प्रति काफी कारगर माना गया है।
- Brahmastra : इसे नीम के फल व पत्तियों , अमरुद ,कस्टर्ड सेब ,अनार ,आदि को गौ मूत्र में मिला कर तैयार किया जाता है ,इसे पत्तियों पर छिड़काव के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
- Neemastra : इस मिश्रण को गाय के गोबर , गौ मूत्र और नीम को मिला कर तैयार किया जाता है।
zero budget farming के नुक्सान :
- जब फसल में बाहरी रूप से किसी भी प्रकार का उर्वरक नहीं पड़ेगा तो यह उत्पादन पर प्रभाव डाल सकता है।
- भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश के लिए यह उत्पादन का घटना ठीक नहीं है।
- इस विधि पर अभी ज्यादा शोध नहीं हुआ है और जिस भी संगठन ने इसका परीक्षण किया है वही इसके उत्पादन को कई गुना तक बता रहा है, जिसमें कुछ कह पाना संभव नहीं है कि उत्पादन ज्यादा होगा या कम होगा।
" the hindu " में छपे एक आर्टिकल में बताया गया है , की यह कृषि तकनीकी अभी ज्यादा शोध नहीं हुआ है , किसी भी तकनीकी को पूर्ण रूप से फायदे नुक्सान को परखने में लगभग 4-5 साल का समय लगना चाहिए।
Conclusion : आशा करता हूँ , की आप के विषय -zero budget farming in hindi से जुड़े सभी तथ्यो की जानकरी हो गई होगी,
आप सब का बहुत धन्यवाद !!!
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