भारत में भू - सुधार असफल क्यों हुआ |भू - सुधार के असफल होने के कारण | Land Reform in India upsc | Why Land Reform fail in INDIA |
भारत देश अपने इतिहास में कई सैकड़ों साल गुलाम रहा है और इस भारत की धरती पर दूसरों ने राज किया है जिस कारण से भूमि का बड़ा भाग उस क्षेत्र के राजाओं , शहंशाह , नवाब , जमींदार ईस्ट इंडिया कंपनी के आधीन आता था और उस भूमि पर वहाँ की प्रजा से जबरदस्ती काम करवाते थे और उनसे कर भी लेते थे और परेशान भी करते थे।
उसका नतीजा यह हुआ कि जो कर वसूलते थे वे जमींदार अमीर होते जा रहे थे और ज्यादा जमीन पर खेती कराने में सक्षम होते जा रहे थे और गरीब लोग और गरीब होते जा रहे थे।
ऐसे में कुछ के हाथों में ही ज्यादा जमीन एकत्र होने लगी और यह देश के लिए और देश के विकाश व सभी उत्थान के लिए भूमि का बराबर रूप से बाटना जरूरी हो गया था जिसे ही भू -सुधार या land reform in india कहा गया।
भारत में भू - सुधार के असफल होने के कारण | Why land reform in India become failed |
किसी भी पॉलिसी या कानून कारगर रूप से सफल होना वहा की प्रदेश सरकार की शक्ति व सक्रियता को दर्शाता है। किसी राज्य में पूर्ण रूप से कोई भी कानून लागू होने का अर्थ है वहाँ की कार्यपालिका की अहम भूमिका रहती है।
इसी के उदहारण है - केरल और पश्चिम - बंगाल में सफल रूप से यह लागू हुआ वहा से बाकि राज्यों की सरकार को कुछ सीख़ लेना चाहिए।
Land Reform In India | भूमि-सुधार क्या है
भूमि के मलिक का बदलाव ही भूमि सुधार कहलाता है।
अर्थात बड़े व अमीर लोगों ( जिसके पास ज्यादा मात्रा में जमींन इकट्ठा है ) उनके पास से जमींन का कुछ हिस्सा लेकर गरीबो में दे देना भू - सुधार कहलाता है।
भूमि सुधार का तात्पर्य यह है कि यह एक कृषि सुधार था जिसमें उत्पादकता और आर्थिक रूप से से कानून और नियम को मानते हुए भूमि का पुनर्वितरण करना था।
यह सामान्यता भूमि का पुनर्वितरण था।
भूमि सुधार का उद्देश्य :
- भूमि - सुधार का प्रमुख उद्देश्य यह था कि सभी लोगों में भूमि वितरण बराबर रूप से हो जिससे लोगों के बीच में समानता आये।
- इस सुधार से देश में ज्यादा से ज्यादा भूमि कृषि के उत्पादन के लिए इस्तेमाल होंगी। भारत में कृषि योग्य भूमि भी बढ़ेगी और अनाज का उत्पादन भी बढ़ेगा और हमारा देश भी आगे बढ़ेगा।
- भूमि सुधार के सफल रूप से लागू हो जाने से रोज़गार के नए अवसर भी निकलेंगे आर्थिक रूप से गरीबो को बढ़ावा मिलेगा।
- अंग्रेजो द्वारा लागू किये गए भूमि व्यवस्था से होने वाले गरीबो का शोषण व अत्याचार आदि को समाप्त कर , उससे छुटकारा पाना इसका सबसे बड़ा उदेश्य था।
- भारत जैसे देश में यह कदम बेहद जरुरी था जिससे यहाँ के लोगों के साथ आर्थिक न्याय किया जाए जिससे गरीब और अमीर के बीच की खाई मिटाई जा सके और उत्पादकता बढ़ाई जा सके।
- संस्थागत सुधार
- तकनिकी सुधार।
भूमि सुधार के प्रकार -
Land reform in india upsc |
आजादी के बाद प्रयोग में लाये गए भू - सुधार मुख्यत चार निम्न है :-
- बिचौलिय की समाप्ति ( जैसे - जमींदार , सेठ आदि )
- किरायेदारी सुधार
- भूमि-धारण पर सीलिंग फिक्सिंग
- भूमि-धारण का समेकन ( या चकबंदी )
- जमींदारी व्यवस्था : इस व्यवस्था में भूमि के एक बड़े हिस्से को एक ऐसे व्यक्ति के अधिकार क्षेत्र में दिया जाता था जिसे ज़मींदार कहते थे। वह उच्च जाति से होता था और उसका यह काम होता था कि भूमि पर खेती करवाए और उनसे कर वसूल कर प्रशासन तक पहुचाये ,. लेकिन वे उत्पादन का मोटा हिस्सा खुद ही रख लेते थे। इस राजस्व व्यवस्था में असली भूमि मालिक किरायेदार बना दिए जाते थे और उन्हें अपनी ही भूमि पर खेती करने के लिए किराया देना पड़ता था। इसका नतीजा यह हुआ की शासक वर्ग और किसानो के बीच बिचौलिया वर्ग बन गयी जो बीच का पैसा खा कर और भी ज्यादा सक्षम बनते जा रहे थे।
- रैयतवाड़ी व्यवस्था : उस समय में भूमि पर खेती करने वालो तो रैयत ( Ryots ) कहा जाता था और इसी वजह से इसे रैयतवाडी सिस्टम भी कहा गया। इसमें कोई बिचौलिया नहीं होता था इसमें कर सीधा रयोट्स के पास से प्रशासन को जाता था। इसमें रयोट्स को ही उनकी भूमि का मालिक मन गया , उन्हें उनकी भूमि पर पूरा हक़ दिया गया वे उस पर खेती कर सकते थे , बेच सकते थे , अपने पुत्र को दे सकते थे और यह अधिकार पैतृक बनाया गया।
- महलवाड़ी व्यवस्था : इस व्यवस्था में महल का अर्थ है - गाँव। और जिसे इस महल से कर इकट्ठा करने का काम मिला था उसे लम्बरदार की उपाधि दी गयी। यह व्यवस्था को उत्तर भारत में लागू किया गया लेकिन सभी भू राजस्व व्यवस्था की तरह यह भी सक्षम नहीं रही।
2. किरायेदारी सुधार - भू - सुधार:
इसके द्वारा गवर्नमेंट ने बिचौलिए को खत्म किया और किसानो को भूमि का असली मालिकाना हक़ दिया गया
किरायेदारी सुधारों का उद्देश्य किराए का नियंत्रण , कार्यकाल की सुरक्षा प्रदान करना और किरायेदारों को मालिकाना हक़ प्रदान करना है। किरायेदारी सुधार कानून किरायेदारों ( भूमि पर किरायेदारों की तरह खेती करने वाले ) के पंजीकरण के लिए प्रावधान प्रदान करते हैं, या पूर्व किरायेदारों को सीधे राज्य के तहत स्वामित्व अधिकार प्रदान करता हैं।
3. भूमि जोत पर सीलिंग फिक्सिंग भू - सुधार :
कृषि सुधार करने की पंक्ति में एक बहुत महत्वपूर्ण कदम उठाया गया की प्रत्येक नाम पर भूमि ग्रहण सीमा लगायी गयी। उस सीमा के अंदर ही एक नाम पर भूमि होनी चाहिए।
अगर किसी के पास उस सीमा से अधिक होने पर उस सीमा से अधिक भूमि को सरकार उसका मुवाबजा देकर उस भूमि को ले लेती है और भूमि से वंचित लोगो को दे देती।
लेकिन , सभी कानूनों की तरह लोगो ने इसमें भी बचने के तरीके ढूढ़ लिया और अपने परिवार के लोगो में ही अपनी भूमि को बाट दिया जिससे प्रत्येक नाम पर भूमि कम हो गयी और वे इस कानून से बच गए।
4. चकबंदी भू - सुधार :
इस कानून के तहत आसपास के गांव या इलाके में आपकी जितनी भी जमीन हो सबको एक पास लाना जिससे कृषि करने व ट्रैक्टर , कंबाइन व टूबवेल का प्रयोग आसान हो जाये।
जिससे भूमि का नाजायज प्रयोग कम हो , मैनफोर्स की भी खपत बढे , छिपी बेरोजगारी और ज्यादा से ज्यादा उत्पादन क्षेत्र में वृद्धि आए।
- सीमांत किसान - 1 हेक्टेयर तक की भूमि
- लघु - 1 -2 हेक्टेयर तक की भूमि
- अर्ध मध्यम - 2 - 4 हेक्टेयर तक की भूमि
- मध्यम आकार - 4 - 10 हेक्टेयर तक की भूमि
- बड़े आकार के - 10 हेक्टेयर या उससे ज्यादा की भूमि। .
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंthanks for this ::
जवाब देंहटाएंDid you want any other topic , kindly mention here.: :::::)