10 रोचक तथ्य - मेजर ध्यानचंद आत्मकथा | Major Dhyanchand Aatmakatha | Divya-Article

मेजर ध्यानचंद जी की आत्मकथा का नाम  | Major Dhyanchand Aatmakatha | 10 Facts To Know About Him


मेजर ध्यानचंद जी की आत्मकथा का नाम ' गोल या GOAL ' है .


मेजर ध्यानचंद को 20 वीं सदी के महान खिलाडी थे जिन्होंने पैसे , और पद को छोड कर देश को आगे रखा और अपने देश के लिए ही खेले।

मेजर ध्यानचंद को क्यों एक सेना में पद की उपाधि मिल रही थी ? मेजर ध्यानचंद के जीवन से जुड़े कुछ रोचक तथ्य जिन्हें जानकर आप भी इस भारत माँ के इस सपूत को दिल से नमन करेंगे।



  • हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद भारत के पहले खिलाड़ी हैं जो ओलंपिक में तीन स्वर्ण पदक जीते और भारत देश का नाम पूरे विश्व भर में ऊंचा किया।

  • उनकी इस उपलब्धि को देखते हुए और उनके सम्मान में उनके जन्मदिन को पूरे भारत में राष्ट्रीय खेल दिवस या National sport day के नाम से मनाया जाता है।

  • उन्होंने अपने जीवन में सभी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय खेलो को मिलाकर हजार से भी ज्यादा गोल बनाए हैं

  • उन्होंने 1927 से 1936 तक ओलंपिक के हॉकी खेल में भारत का प्रतिनिधित्व किया और लगातार तीन ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीते - 1928 एम्स्टर्डम , 1932 लॉस एंजिलोस और 1936 में बर्लिन ओलिंपिक में गोल्ड मेडल जीता।

  • 1936 की बर्लिन ओलंपिक की रोचक घटना : 1936 के बर्लिन ओलंपिक का हॉकी फाइनल मैच था जो कि जर्मनी और भारत के बीच खेला जाना था जिसमें 30,000 से ज्यादा लोग उपस्थित थे और उनके साथ विश्व के सबसे बड़े तानाशाह हिटलर भी वहां पर मौजूद था और वहां पर भारत के खिलाड़ियों का प्रदर्शन को देखकर बहुत प्रभावित हुआ और उस मैच में भारत ने जर्मनी के खिलाफ 16-1 से जीत प्राप्त की।

  • जिसमे 16 गोल में से 15 गोल मेजर ध्यानचंद ने किये थे जिससे हिटलर बहुत प्रभावित हुआ और उसने मेजर ध्यानचंद को डिनर पर बुलाया और उसने जर्मनी की तरफ से खेलने के लिए बहुत ही लुभावने ऑफर दिए - कि मैं आपको सेना के फील्ड मार्शल बना दूंगा।

  • लेकिन मेजर ने प्रस्ताव ठुकराते हुए कहा - मुझे आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी मेरे देश की नहीं है बल्कि यह मेरी जिम्मेदारी है कि मैं अपने देश को आगे बढ़ाओ और मैं अपने देश के लिए ही खेलूंगा और एक दिन विश्व का सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी बनूंगा। 

  • वे हॉकी खेल क्षेत्र में इतने योग्य है कि उनके सम्मान के रूप में सेना के पद से नवाजा गया और साल दर साल उनकी सेना में पदोन्नति होती गयी ,उनकी सेना में पदोन्नति कुछ इस प्रकार हुई , 1927 - लांस नायक , 1932 में नायक , 1937 में सूबेदार , 1943 में लेफ्टिनेंट और 1949 में कप्तान और आगे वे मेजर पद तक पहुंच गए थे। 
  •  उनकी प्रतिभा के तो उस समय सभी लोग प्रशंसा करते थे और उनकी कड़ी मेहनत और लगन के चलते उन्हें आज भी हॉकी का जादूगर कहा जाता है और ऐसा कहा जाता है कि हॉकी खेल में आज तक उनके जैसा ना कोई हुआ है और  भविष्य में शायद ही कोई हो। 

  • वे जब ग्राउंड पर होते थे तो ऐसा लगता था कि गेंद हमेशा उनके हॉकी स्टिक से चिपकी रहती थी जिससे कई बार तो अन्य प्रतिद्वंदी  खिलाड़ियों को तो ऐसा लगता था कि इनकी स्टिक में चुम्बक या गोंद लगा है जिससे गेंद हमेशा चिपकी रहती है - और यहाँ तक कि उनकी स्टिक को तोड़ कर जांच भी किया गया लेकिन कुछ भी नहीं मिला। 


निष्कर्ष : आशा है आपको यह आर्टिकल आपको पसंद आया होगा और आपको मेजर ध्यांचंद के बारे में कुछ रोचक तथ्य भी जान्ने को मिले होंगे।

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