भक्ति आंदोलन की शुरुआत | आदि गुरु शंकराचार्य | bhakti movement in hindi

 भक्ति  आंदोलन   की  शुरुआत | आदि गुरु शंकराचार्य जी का जीवन परिचय | Bhakti movement in hindi |

 

8 वी शताब्दी के आस पास के समय लोग राजनीतिक रूप से ही नहीं बल्कि धार्मिक रूप से भी बटे  हुए थे। उसमें जैन धर्म , बौद्ध धर्म , अन्य भी ,आदि और हिंदू धर्म में ही 84 से ज्यादा संप्रदाय बट चुके थे। 

 बौद्ध  धर्म में भी तांत्रिक विद्या का बोलबाला हो गया था , उस समय बौद्ध धर्म में हीनयान या  महायान नहीं बल्कि वज्रयान ( तांत्रिक बुद्धिज़्म ) व्याप्त हो गया था। और हिन्दू धर्म में ही मूर्ति पूजन के आधार पर पूरा समाज कई सम्प्रदायों में बट चुका था जैसे - शैव संप्रदाय ( शिव की पूजा करने वाले )  ,वैष्णव संप्रदाय( विष्णु  की पूजा करने वाले ) , सूर्या संप्रदाय ( सूर्या  की पूजा करने वाले )और शाक्त संप्रदाय ( शक्ति  की पूजा करने वाले ) आदि।  

भक्ति आंदोलन शुरू होने का कारण : 

इन सभी सम्प्रदायों में संघर्ष भी शुरू हो चुका  था ,  एक दूसरे धर्म के प्रति बैर  होना , हिंसक  प्रभाव भी देखने को मिले हैं। सभी धर्म अपनी मूल मंत्र , अस्तित्व व विचारधारा को खो रहे थे और उसमे बाहिरी तत्त्व , पाखंड आदि  भी प्रवेश कर रहे थे  . 

Bhakti movement in hindi |भक्ति  आंदोलन
Bhakti movement in hindi |भक्ति  आंदोलन

भक्ति आंदोलन की शुरुआत दक्षिण भारत से हुई है जहा नयनार ( शिव की पूजा करने वाले ) और अलवार संतो  ( विष्णु की पूजा करने वाले )  द्वारा शुरू किया गया था। 

भारत को इसी दुविधा से निकालने के लिए आदि गुरु शंकराचार्य जी  ने पूरे भारत की  पद  यात्रा की थी और उनका इस पद यात्रा के पीछे का उद्देश्य यह  था कि वे  पूरे भारत को धार्मिक व आध्यात्मिक रूप से एक धागे में पिरोए। उन्होंने एकैश्वर्य वाद का सिद्धांत दिया। 

  उन्होंने पूरे भारत की बिना किसी स्थान को छोड़े पूरे भारत के उपस्थित धर्मों के विद्वानों के साथ शास्त्रार्थ किया और उन्हें पराजित भी किया , जिससे इनके अनुव्यायी की संख्या बढ़ गयी और इस तरह से उन्होंने  धर्म विजय की नींव रखी जिसे हम Bhakti movement की शुरुवात भी कहते है। 


  भक्ति आंदोलन की शुरुवात | Bhakti movement in Hindi : 

 8 वी शताब्दी के आस पास  शुरू हुआ यह  भक्ति आंदोलन| Bhakti movement एक हिंदूवादी सुधारवादी जनआन्दोलन था | जिसमे हिन्दू धर्म से निकलकर दूसरे धर्म में गए लोगों को दुबारा से हिन्दू धर्म में लाने का काम किया | 

  • इस आन्दोलन की शुरुआत दक्षिण भारत से हुई थी | 
  • इस आंदोलन की शुरुवात आदि गुरु शंकराचार्य जी ने की थी , उन्होंने पैदल ही पूरे भारत में यात्रा कर के अपने विचारो को फैलाया था। 

यह आंदोलन लगभग 800 सालों तक चला था | जब जैन व बुद्ध धर्म अपने अंतिम चरण पर थे तब लगभग 8वी शताब्दी के शुरुआत में ही दक्षिण भारत से एक नैनार संत आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा यह आंदोलन शुरू किया गया था |

आदि गुरु शंकराचार्य जी ने हिन्दू धर्म में प्रचलित कुरीतियों , बाह्याडम्बरो  आदि को सुधारने का भी  काम किया | वे समझ गए थे कि हिन्दू धर्म को अगर दूर तक व ज्यादा से ज्यादा लोगों तक में फैलाना है तो हमें हिन्दू धर्म के बहु ईश्वरवाद  को खत्म कर के एक ईश्वरवाद  में बंधना होगा | 

इसीलिए उन्होंने अपने अद्वैतवाद का  सिद्धांत अर्थात एक ईश्वर को पूजना और उनके विचारो को मानने वालो को स्मृति संप्रदाय कहा जाता था। 


आदि गुरु शंकराचार्य जी ने हिन्दू धर्म को दुबारा से  पुनर्जीवित करने का काम किया। उन्होंने हिंदू धर्म की कुरीतियों ,  कुप्रथाओ , पाखंड और बाह्य आडम्बर को खत्म किया है और अपना एक सिद्धांत दिया - अद्वैतवाद ( एक ईश्वर को पूजना ) और उनके सिद्धांत को मैंने वालो को स्मृति संप्रदाय के लोग कहा जाता था  | 

आदि गुरु द्वारा स्थापित किये गए चार मठ  : 

 समाज की सुरक्षा की द्रिष्टी से  ,सामाजिक  द्रिष्टी से , आद्यात्मिक एकता  की द्रिष्टी से आदि गुरु शंकराचार्य ने भारत के चारो दिशा  में मठो /पीठ का निर्माण करवाया था और उन जगहों पर अपने  मुख्य चार शिष्य को जिम्मेदारी दी। 
  1. ज्योतिषी पीठ ( बद्रीनाथ , उत्तराखंड )  -- उत्तर दिशा में 
  2. शारदा पीठ ( द्वारका , गुजरात )           -- पस्चिम दिशा में 
  3. श्रृंगेरी पीठ ( मैसोर , कर्नाटक )            --  दक्षिण दिशा में 
  4. गोवर्धन पीठ ( पुरी , ओडिशा )             -- पूरब दिशा में 

आदि गुरु शंकराचार्य से जुडी कुछ बातें : 

शंकराचार्य जी एक  दूरदर्शी ,  दार्शनिक और धार्मिक ,  धर्म की रक्षा करने वाले महान विद्वान महत्मा थे।  उन्होंने अपना पूरा जीवन आध्यात्मिक रास्ते पर चलने में गुजार दिया , उन्होंने द्वैतवाद सिद्धांत के प्रचार प्रसार के लिए पूरे भारत में पैदल पद यात्रा किया। 

आदि गुरु शंकराचार्य जी का जीवन परिचय :  

  • शंकराचार्य का बचपन का नाम - शंकर था और बाद में जब वे आचार्य बने तब से उन्हें शंकराचार्य के नाम से जाना जाता है। 
  • केरल के एर्नाकुलम  जिले के कलाडी गांव में सन 1788 में कहा जाता है ( विवादित ) .  निंबोदरी  पाद संतो  में से एक  विद्वान शिवगुरु को  भगवान् शंकर के आशीर्वाद से  पुत्र की प्राप्ति हुई जिस वजह से उनका नाम  शंकर रखा गया। 
  • कहा जाता है मात्र 2 से 3 वर्षों में ही उन्होंने सभी वेदों ,  उपनिषदों का ज्ञान प्राप्त कर लिया और यहां तक कि उन्होंने अपने यहां की बोली मलयालम को भी बड़े ही अच्छे से सीख लिया था 
  • नौ वर्ष की  अल्पायु में ही वे  श्री गुरु गोविंद पाद से सन्यासी की  शिक्षा लेना शुरू कर दी थी। 

आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा अद्वैतवाद का खंडन : 

लगभग 12 वी सदी , में आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा दिए गए सिद्धांत -  अद्वैतवाद का भी खंडन किया गया।  उनके सिद्धांतो का मुख्यता 4 भाग में खंडन हुआ जो ज्यादा प्रसिद्ध है। 
  1. माधवाचार्य ने द्वैतवाद का सिद्धांत दिया और उनके विचारधारा को मानने वाले को ब्रह्मा संप्रदाय कहा जाता है। 
  2. निम्बकाचार्य ने द्वैता - द्वैतवाद  का सिद्धांत दिया  और उनके विचारधारा को मानने वाले को सनक  संप्रदाय कहा जाता है। 
  3.  वल्लभाचार्य जी ने शुद्धा-  द्वैतवाद का सिद्धांत दिया और उनके विचारधारा को मानने  वालों को पुष्टि सम्प्रदाय कहा गया। 
  4. रामानुजाचार्य जी ने विशिष्टा - द्वैतवाद का सिद्धांत दिया और उनके विचारधारा को मानने वालों को श्री संप्रदाय कहा गया।  

भक्ति आंदोलन का प्रभाव : 


इस आंदोलन की शुरुवात हिन्दू संतो द्वारा शुरू की गयी थी और उद्देश्य यह था कि धार्मिक बदलाव लाया जाए कि मोक्ष प्राप्ति के लिये भक्ति का मार्ग अपनाया गया। 

  • भक्ति आंदोलन  ने जातिवाद को खत्म किया , इस  भक्ति आंदोलन में सभी जातियों के लोग की उपस्थिति थी। ईश्वर की नजर में सभी लोग बराबर है।  
  • इस आंदोलन के बाद ईश्वर  के प्रति  लोगो की अभिव्यक्ति का माध्यम भक्ति गाना , भजन , आदि बन गया। 
  •  इस आंदोलन ने हिंदू धर्म में प्रचलित जातिवाद और मूर्ति पूजन को कम किया है और हिंदू -  मुस्लिम में भाईचारे की भावना को बढ़ावा देने का काम किया है। 
  • इस्लाम धर्म में उदारवादी और धर्मो को  जोड़ने का काम किया है। 

भक्ति आंदोलन  के  मौलिक  सिद्धांत : 

भक्ति आंदोलन के मौलिक सिद्धांत निम्न है :-
  1. भक्ति संतो  का मौलिक  सिद्धांत समानता और आपसी  भाईचारा  था। 
  2. ब्रह्मांद में ईश्वर एक है और ईश्वर की नजर में सभी लोग बराबर है। 
  3. कोई भी व्यक्ति ईश्वर को प्राप्त कर सकता है, लेकिन कर्मकांड , पाखण्ड ,  अनुष्ठान और धार्मिक संस्कार से नहीं , बल्कि प्रेम और भक्ति के माध्यम से।

Conclusion : 


भक्ति आंदोलन लगभग  16 सदी में अपने चरम पर था जिसके बाद इसको  दो धाराओं में बांट दिया गया। 
800 सालो तक चला यह जन आंदोलन (Bhakti movement |  भक्ति आंदोलन ) 16 वी सदी या मुग़ल काल में अपने चरमो उत्कर्ष पर था उस समय तक भारत में  इस्लाम धर्म का भी आगमन हो चुका  था।  

 अंत में , भक्ति  आंदोलन के बाद धर्मो को कुछ इस प्रकार  बाटा गया। 

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