भारतीय न्याय व्यवस्था में कमी | न्यायपालिका में उपस्थित कमियाँ | Problem in Indian judicial system | flaws in judiciary |
भारत देश में सभी जंता व सभी लोग मिल जुल रहे और कोई व्यक्ति या संगठन किसी जाति , वर्ग विशेष को उसके मौलिक अधिकारो से वंचित नहीं कर सकता।
यह विश्वास हर भारतीय को भारत का संविधान दिलाता है और इसी की निगरानी के लिए भारत में न्याय पालिका का गठन किया गया है
जिस सिस्टम( न्याय पालिका ) पर लोगो का विश्वास है कि मैं अपने अधिकारों से वंचित होने पर ( किसी अन्य द्वारा सताए जाने पर ) मैं न्यायालय में गुहार लगा सकता हूँ। यही कारण है कि लोगों के बीच यह भय होता है कि उन्हें भी दंड मिल सकता है उन्हें भी सजा मिल सकती है लेकिन आज के समय में यह न्याय तंत्र काफी हद तक ध्वस्त हो चूका है।
भारतीय न्याय व्यवस्था |
आज इस आर्टिकल के माध्यम से हम भारतीय न्याय व्यवस्था से जुडी 10 कमियों के बारे में जानेंगे।
- न्यायधीशो/जजों की कमी : भारत में सुप्रीम व हाई कोर्ट में जजों की इतनी भरी मात्रा में कमी है कि हाल यह है कि 2011 की जनगड़ना के अनुसार भारत की कुल जनसँख्या में प्रति 10 लाख लोगो पर केवल 18 जजों की नियुक्ति हुई है।
- पदों पर रिक्तता : भारतीय न्याय व्यवस्था में जितने भी पद वर्तमान में उपस्थित है वहा पर भी आपको भारी मात्रा में रिक्तता देखने को मिलेगी। जितने भी पद वर्तमान में है , उन्हें ही पूर्ण रूप से भर दिया जाये तो यह काफी हद तक न्याय व्यवस्था की सक्रियता की बढ़ाएगा।
- न्यायधिशो की स्वीकृति पदों की कमी : भारत में न्यायधिशो के पदों की भी कमी है।
भारतीय न्याय व्यवस्था - निर्णय आने में देरी : भारत में न्यायपालिका की कार्य प्रणाली इतनी ज्यादा ध्वस्त या सुस्त है कि केस का निर्णय आने में ही कई दशक लग जाते है आपने इसके बहुत से उदहारण सुने होने जैसे - राम मंदिर केस , निर्भया केस और भी अन्य।
- पारदर्शिता का अभाव : भारत में न्यायपालिका के न्यायधिशो की नियुक्ति व स्त्थानांतरण में पारदर्शिता को लेकर सवाल उठते रहे है। न्यायपालिका को इसे बिलकुल पारदर्शी बनाना चाहिए क्योकि यह ही प्रजातंत्र को सुचारु रूप से चलाने के लिए जिम्मेदार है।
- कार्य दिवस की कमी : भारतीय न्याय व्यवस्था में अवकास बहुत रहते है , न्यायलय रविवार व किसी त्यौहार के अलावा गर्मी के समय में गर्मी की छुट्टी भी होती है जिस दौरान न्यायलय बंद रहते है कोई सुनवाई नहीं होती।
- वकील व न्यायाधीश के बीच का तालमेल : वकील को प्रति सुनवाई पर उनकी फीस मिलती है , किसी मामले को लम्बा खींचने में कभी कभी कुछ लोगों का अपना स्वार्थ रहता है।
- आधुनिक तकनिकी का कम प्रयोग होना
- निर्णय की कोई समय सीमा का न होना : भारत में केस ट्रायल की कोई समय सीमा निर्धारित नहीं है जिससे कितने भी पुराने केस हो वे चलते रहते है और उनके निर्णय नहीं आते।
- न्यायपालिका को अपने मातहत लाने की कोशिश : भारत में अभी तक ऐसा कोई केस सामने नहीं आया है जिसमे न्यायपालिका को किसी स्तर पर डराया , धमकाया गया हो , लेकिन दूसरी तरह से इसे प्रयोग किया जाता है - कि बजट में न्याय पालिका को बहुत कम राशि आवंटित करना।
- न्यायपालिका की शक्तियो का केन्द्रीकरण : पूरे भारत में सिर्फ एक ही सुप्रीम कोर्ट है जो कि राजधानी दिल्ली में स्थित है , यह एक तरह से सक्तियो का केंद्रीयकरण ही है जो दक्षिण और पूरब भारत के लोगो के पहुंच से बहुत दूर है। जिस प्रकार आपको नजदीक में ही राशन की दूकान मिल जाती है उसी प्रकार न्यायालय भी आसानी से सुलभ दूरी पर होने चाहिए। इसके ही ब्रांच बना देना चाहिए सभी दिशाओं में।
भारतीय न्याय व्यवस्था - अनैतिक और असफल परीक्षण : जेल में सजा काट रहे 70 % कैदियों के तो दोष भी शाबित नहीं हुए रहते उनकी जांच चलती रहती है अर्थात उनकी अभी सुनवाई चल रही है वे निर्दोष भी हो सकते है।
- कानूनी विलम्ब ( आपराधिक मामले के निपटारे ) के कारण विकास दर और जीडीपी में भी गिरावट आती है।
- उच्च न्यायालय की लोकेशन : उच्चातम न्यायलय उत्तर भारत में राजधानी दिल्ली में स्थित है लेकिन अगर कोई केस दक्षिण भारत के राज्यों से है तो उसे यहाँ आना काफी महंगा पड़ेगा , कम से कम इसकी कुछ ब्रांच पूरे देश में होनी चाहिए ( कम से कम एक दो )
निष्कर्ष : वर्तमान समय में कोर्ट का अर्थ बदल गया है जहाँ पहले लोग कोर्ट पर विश्वास करते थे कि उन्हें न्यायलय से न्याय मिलेगा और दोषी को सजा मिलेगी वही आज इसका अर्थ बिलकुल अलग हो गया है पहले लोगो को तब तक दोषी नहीं माना जाता जब तक उसका दोष सिद्ध न हो जाये , लेकिन आज वह तब तक दोषी मन जायेगा जब तक वह निर्दोष न साबित हो जाये।
- पारदर्शिता का अभाव
- न्यायधीसो की कमी
- पदों पर रिक्तता
- न्याय आने में देरी
- आधुनिक तकनीकि का कम प्रयोग।
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