जैनिज़्म के सिद्धांत , शिक्षा , इतिहास , वास्तुकला , साहित्य | Jainism ke principle , council | Jainism founder UPSC essay
जैन धर्म दुनिया का सबसे शांतिपूर्ण धर्म है जिसकी उत्पत्ति सातवीं से पांचवीं शताब्दी के बीच मानी जाती है , उसी समय के समकालीन बौद्ध धर्म का भी उदय हुआ।
जैन शब्द का अर्थ - Jain word meaning
जैनिज़्म शब्द की उत्पत्ति संस्कृत शब्द " जिना " से हुई है , जिसका अर्थ होता है - " जीतना " अर्थात ' इन्द्रियों को जीतना ' और जो भी जिना के सिद्धांतो को मानते है , उन्हें " जैन " कहा जाता है।
जैनिज़्म के सिद्धांत | Jainism ke principle
- यह धर्म वेदों और वैदिक अनुष्ठानों के अधिकार को खारिज कर दिया।
- यह धर्म ईश्वर की अस्तित्व पर और वैदिक काल में किए गएवैदिक कर्मकांड पर विश्वास नहीं करता।
- कर्मा (कर्म ) और आत्मा का पुनर्जन्म ( आत्मा का स्थानांतरण ) में विश्वास करता है।
- जाति व्यवस्था को अस्वीकार करते हैं यह धर्म समानता पर बहुत जोर दिया था इसके नज़र में सभी लोग एक सामान है।
जैन धर्म का इतिहास :
जैन धर्म में कुल 24 तीर्थांकर हुए जिन्होंने लगातार जैन धर्म की शिक्षा और सिद्धांत को पूरे देश भर में विष्तृत किया , और आज न सिर्फ भारत में बल्कि विश्व भर में जैन धर्म को मानने वाले पाए जाते है।
जैन धर्म के संस्थापक और प्रथम तीर्थंकर -- ऋषभ-देव जी थे जिन्हे आदिनाथ भी कहा जाता है।
23वें तीर्थंकर जैन धर्म में पार्श्वनाथ थे।
जैन धर्म का बड़े तौर पर व्यापक प्रसार 24 वें तीर्थंकर - महावीर स्वामी के समय में हुआ और उन्हें ही जैन धर्म का सर्वोच्च उपदेशक माना जाता है। जिन्होंने जैन धर्म को व्यापक पैमाने पर विकसित किया
- जैन धर्म के अनुव्ययीओ को भिक्षु कहा जाता है।
महावीर स्वामी का जीवन - Mahavira Swami ka jeewan
- महावीर स्वामी का जन्म 540 B C में कुन्द्राग्राम , वैशाली में हुआ था।
- पिता - सिद्धार्थ ( जटाक क्षत्रिय वंश से थे ) और माता - त्रिशला ( लिच्छवि वंश की राजकुमारी ) .
- महावीर जी की पत्नी - यसोदा और माना जाता है कि इनकी एक पुत्री भी थी जिसका नाम - अजोजा था।
- यह एक क्षत्रिय राजसी वंश से नाता रखते थे लेकिन इन्होने 30 वर्ष की आयु में ही इन्होने अपना राजसी राज पाठ सब त्याग दिया और बाकि जीवन तपस्वी की तरह बिताया।
- इन्हे 42 वर्ष की आयु में कैवल्य मिला ( कैवल्य अर्थात - संपूर्ण ज्ञान )
- महावीर स्वामी जी की मृत्यु 72 वर्ष की आयु में पावपुरी , राजगृह में हुई थी।
- महावीर स्वामी जी को कई अन्य नामो से भी जाना जाता है - जिना , जितेन्द्रिय , निरग्रंथा , वर्धमान महावीर ,आदि।
- अंतिम तीर्थंकर के रूप में भी जाना जाता है
जैनिज़्म या जैन धर्म |
जैन धर्म के लक्ष्य - jain religion ka purpose
जैन धर्म का उद्देश्य है - संपूर्ण ज्ञान और निर्वाण। जैन धर्म वैराग्य होने पर बढ़ावा देता है
कर्मकांडों , घरेलू और सामाजिक क्रियाों का परित्याग व बार-बार जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति ( समसारा ) को बढ़ावा देता है।
नोट : सभी धर्म ( जैन , बुद्ध ,व हिन्दू ) में दो विचारो का वर्चस्व है :) समसारा और कर्म। ( जब हम मरते हैं तो हमारी आत्मा नए शरीर में जाती है और हम अंतहीन चक्र में फंस जाते हैं )
जैन कॉउंसिल | जैन परिषद | Jain Council :
दूसरी जैन परिषद : 5 वीं शताब्दी में , जैन धर्म की दूसरी परिसद वल्लभी में आयोजित की गई थी। जिसमे सभी जैन धर्म के अनुव्यायी , प्रचारक , जिना आदि सब एकत्रित हुए थे। दूसरी परिसद का आयोजन देवराधी क्षमाश्रमणा की अध्यक्षता में किया गया था।
इसी परिसद में 12 अंगास ( Angas ) और 12 उपांग ( Upanga ) का अंतिम संकलन किया गया था।
जैन धर्म के सभी धर्म ग्रंथो की भाषा संस्कृत या प्राकृत भाषा है।
निर्वाण का मार्ग ( त्रिरत्न ) - Tri-Ratna
- Right Faith
- Right Knowledge
- Right Behaviour or conduct
जैन धर्म की 5 शिक्षा :
- Non - Injury ( अहिंसा )
- Non Lying ( सत्य )
- Non - Stealing (असत्येय )
- Non - possession ( अपरिग्रह , गृह त्यागी )
- calibacy ( ब्रम्हचर्य )
जैनिज़्म धर्म के प्रकार | Types of Jainism :
चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल के दौरान , जैन धर्म दो संप्रदायों में बट गया , स्वेताम्बर और दिगंबर , दोनों के व्यव्हार , शिक्षा , विश्वास में थोड़ा अंतर भी था , आईये विस्तार में समझते है।
- स्वेताम्बर : श्वेतांबर का अर्थ है - सफेद कपड़े पहनने वाले भिक्षु ( जैन धर्म के अनुव्ययी ) . इस संप्रदाय के लोग जैन धर्म के नियमों को शक्ति से नहीं मानते है। इस सम्प्रदाय के लोग मानते है की वर्धमान स्वामी विवाहित थे।
- दिगंबर : दिगंबर - इस संप्रदाय के लोग कोई कपड़े नहीं पहनते हैं , वे आमतौर पर नग्न रहते है और जैन धर्म के नियमों का सख्ती से पालन करते हैं वे महावीर स्वामी को बाल ब्रह्मचारी के रूप में मानते हैं।
नोट : सन् 1500 ईसवी में , स्वेताम्बर सम्प्रदाय 3 सम्प्रदायों में बट गया , 1. श्वेताम्बर मूर्तिपुजक 2. स्थनकवासी 3. तेरापंथी ..
जैन साहित्य | Jainism Literature :
- महावीर से पहले के तीर्थंकर की शिक्षा को कुल 14 पुरवास के रूप में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में मौखिक रूप में सिखाया जाता था तब तक कोई लिखित जैन साहित्य नहीं था।
- महावीर स्वामी के बाद उनका नाम बदलकर आगम हो गया। और पहली जैन परिसद में 12 आगम को जैन साहित्य के रूप में संकलित किया गया , जिसे जैन आगम कहा जाता है।
- ये आगम महावीर जी के शिक्षण पाठ पर आधारित हैं , जैन धर्म के 46 पाठ है।
- 12 उपांग आगम : उपांग आगम में आगम की व्याख्या है।
- 6 छेदसूत्र : छेदसूत्र में साधुओ और भिक्षुओ के व्यवहार से संबंधित चर्चा की गयी है।
- 4 मूलसूत्र : ये वे पाठ हैं जो भिक्षुओ के प्रारंभिक चरण में आधार प्रदान करते हैं.
- कल्पसूत्र : यह पाठ भद्रबाहु द्वारा लिखा गया है। इसमें जैन तीर्थांकरों की जीवनी का वर्णन है , मुख्यतः महावीर और पार्श्वनाथ।
जैन वास्तुकला | Jain Architecture :
- रॉक कट केव टेम्पल ( चट्टानों को काट कर बनाये गये , गुफा मंदिर ) : गुफा मंदिर ( चैत्यास ) और मोनास्ट्री ( विहार - जहाँ जैन भिक्षु रहते थे )
- कुछ उदाहरण : खजुराओ मंदिर मध्य प्रदेश , रणकपुर जैन मंदिर , माउंट अबू दिलवाड़ा जैन मंदिर और एल्लोरा में जैन गुफाएं ,आदि।
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