makar sankranti 2022 | essay on makar sankranti hindi

 MAKAR SANKRANTI  ESSAY | मकर संक्रांति पर निबंध-  | Essay on Makar Sankranti hindi


makar sankranti 2022/essay on makar sankranti
makar sankranti 2022/essay on makar sankranti



यह  भारत में मनाया जाने वाला ऐसा  त्योहार है जो हर वर्ष जनवरी के ही माह  में 14 या 15 तारीख को ही पड़ता है और इसे पूरे भारत में ही नहीं बल्कि नेपाल में बांग्लादेश में भी बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। 

 इस त्यौहार के हर वर्ष उसी तिथि के पढ़ने के पीछे बहुत से कारण हैं और यह विभिन्न चीजों का सूचक भी है और इसे पूरे परिवार के साथ पूरे भारत में विभिन्न जगहों पर विभिन्न नामों व परंपराओं के साथ मनाया जाता है। ( जैसे - उत्तर प्रदेश में खिचड़ी , गुजरात में उत्तरायण , व मकर संक्रांति/ makar sankranti आदि ) 


 Makar Sankranti  के पीछे सांस्कृतिक , धार्मिक , ऐतिहासिक और भौगोलिक कारण/ महत्व  है | 

 इस दिन के पीछे के सांस्कृतिक , धार्मिक , ऐतिहासिक और भोगोलिक कारण इसे और भी ज्यादा महत्वपूर्ण बनाते हैं , आइए तो हम एक-एक करके सभी कारणों/महत्व  को जानते हैं। 

  •  सांस्कृतिक कारण :  सनातन धर्म में या हिन्दू धर्म में यह मान्यता है कि इस दिन का जुड़ाव वैदिक काल से माना जाता है  , लेकिन इसकी उत्पत्ति या शुरुआत आज भी रहस्य ही बना हुआ है , कोई लिखित साक्ष्य प्रमाण नहीं है यह पीढ़ी दर पीढ़ी मौखिक रूप से प्रदान किया गया है।                 
  •  धार्मिक कारण :  ज्योतिषी बताते हैं कि इस दिन  को सूर्य देव धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं और इसीलिए इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है इस दिन  को सूर्य देव की पूजा होती है और लोग धार्मिक व पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और यह मान्यता है कि उनके गंगा , गोदावरी , कृष्णा, कावेरी या यमुना में डुबकी लगाने से उनके पाप धुल जाता है। इस दिन इन नदियों के तटों पर मेला लगता है जहा लोग स्नान करने आते है ( कुम्भ मेला ) .                
  •  ऐतिहासिक कारण :  इतिहास काल से ही  दिन को बहुत ही ज्यादा महानवपूर्ण माना  गया है ,  आप लोग महाभारत के युद्ध के बारे  में तो  जानते ही होंगे , जो की 18 दिनों तक चला था  और उसमे के वीर योद्धा भीष्मा पितामह जिन्हे इच्छा मृत्यु का वरदान था और उन्होनें वाणों की सैया पर लेटे  हुए 58 दिनो बाद  उत्तरायण के दिन को ही  चुना अपनी देह त्यागने के लिए , क्योकि       यह  माना जाता है कि इस दिन को त्यागने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है।                                                         
  • भौगोलिक  कारण  : इस दिन का भोगोलिक रूप से बहुत महत्त्वपूर्ण  है क्योंकि इस दिन को  जो सूरज दक्षिण गोलार्ध की और बढ़ा रहा था वह दक्षिणायन पर पहुंच कर ,  14 जनवरी को उत्तरायण की ओर बढ़ना शुरू कर देता है  अर्थात मकर रेखा से कर्क रेखा की ओर बढ़ना  शुरू कर देता है , और इस दिन को बसंत  ऋतु के आगमन  का सूचक  भी कहा जाता है  और इस  दिन से दिन बड़ा व रातें छोटी होना   शुरू हो जाती है। 

मकर संक्रांति त्योहार की खासियत : 


यह त्योहार संस्कृतियो  से भरा हुआ त्यौहार  है , इस दिन को पूरे देश भर  में विभिन्न तरीके  से मनाते  हैं , जैसे - सभी लोग ( बच्चे से लेकर बूढ़े  तक ) पतंग उड़ाते है , और तिल व गुड से बनी मिठाईयां ,लड्डू , व चिक्की आदि लोग खाते  हैं। 

 इस दिन लोग गरीबो को खाना खिलाते हैं और गरीबों को दान  देना शुभ माना जाता है। त्यौहार  को खरीफ  फसल की कटाई पूरी होने के उपलक्ष्य पर भी मनाया जाता  है। 

 इसे पूरे भारत के विभिन्न  राज्यों में विभिन्न नामों  से जाना जाता है ,जैसे - उत्तर प्रदेश में खिचड़ी ,  गुजरात में उत्तरायण , तमिलनाडु  में पोंगल , आंध्र प्रदेश और तेलंगाना महाराष्ट्र मध्य प्रदेश में इसे मकर संक्राति , असम में बीहू या माघ बीहू , हिमांचल प्रदेश में माघी और मिथिला में तिल संक्रांति , आदि। 

मकर संक्रांति शब्द का महत्व : 


इस त्यौहार के  नाम मकर संक्रांति के पीछे   यह कारण   है  कि मकर शब्द मकर राशि को दर्शाता  है और संक्रांति का अर्थ -  प्रवेश करना। तो इसका  अर्थ यह हुआ की सूरज इस  दिन धनु राशि  से मकर राशि में प्रवेश करता है। इसलिए इसका  नाम मकर संक्रांति  पड़ा। 

 और आज इसे मकर संक्रांत या संक्रांति या पोंगल या तिल  संक्रांति के नाम से जाना जाता है जो इसको मनाने के तरीको की विविधता को दिखता है। 

 मकर संक्रांति का इतिहास : 


 मकर संक्रांति से जुड़े बहुत से पौराणिक कथाएं प्रचलित है लेकिन उन सब में  से जो सबसे ज्यादा मान्य है , वह है कि इस दिन सूर्य अपने पुत्र शनि देव से मिलने उनके घर जाते हैं जिन्हे  मकर राशि का स्वामी कहा जाता है , तो जहा सूर्य को सचाई,  रोशनी और तेज का प्रतीक माना जाता है तो उनके उपस्थिति के कारण  शनि का प्रभाव कम हो जाता है और उनके प्रभाव व दोष से  लोगो  पर उनका (शनि दोष ) कम  हो जाता है। 

तो  इसीलिए लोग इस  दिन सूर्य की पूजा करते हैं , जिससे लोग शनि के दंड को कम कर सके। 

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मकर संक्रांति | Makar Sankranti :  

जिस प्रकार से इस त्योहार  का नाम जगह - जगह पर अलग है , उसी प्रकार  से उत्तर भारत में जहां सूर्य देव की पूजा होती है , वही केरल में अयप्पा  की पूजा होती है। 

इस  दिन को लोग विभिन्न तरीके से मानते  हैं , यह  दिन आपसी भाईचारे का दिन है , इस  दिन रिश्तों में मिठास बढ़ती है। 

 यह त्यौहार  सुख , समृद्धि, हर्ष और उल्लास  , व  मीठा खाओ और मीठा बोलो का प्रतीक है , इस  दिन कोपूरे परिवार के लोग छत पर पतंग उड़ते हैं और तिल व गुड़ से बने लड्डू , चिक्की व  खिचड़ी खाते  हैं , 

 इस दिन गरीबो को अनाज दान करना शुभ व पुण्य  काम माना जाता  हैं , सभी लोगों की  कोशिश रहती है की वह कहीं किसी पवित्र नदी में जाकर डुबकी लगाए और स्नान करे और यह मान्यता है की नदी में डुबकी  लगाने से उनके पाप धुल या नस्ट हो जाते हैं। 


कुंभ मेला : 


 कुंभ मेला विश्व भर में आस्था का सबसे विशाल मेला है जिसमे पूरे देश भर में लोग इसमें  भाग लेने आते हैं और यह भारत में चार स्थान  पवित्र नदी के तट  पर लगता है और दूर दूर से लोग  नदी में स्नान  या डुबकी  लगाने आते हैं। 

कुंभ मेला का महात्व : 

 कुम्भ  का अर्थ होता है - कलश अर्थात अमृत कलश। पौराणिक  कथा में मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान जब  अमृत कलश निकला था तब दोनों पक्षों में ( देव और  असुरो )  में 12 दिनों तक युद्ध हुआ था और इस छीना - झपटी के दौरान कुछ  अमृत की  बूंदे   पृथ्वी पर  गिर गई थी। 

स्थान -  इलाहाबाद( प्रयागराज )  , हरिद्वार ,नासिक और उज्जैन में कहा जाता है।  आदि गुरु शंकराचार्य  ने  कुंभ मेला की शुरुवात किये  थे।  पवित्र नदियों के स्थान करने से अमृत का लाभ   आपको भी मिलेगा। 


QuestionHub.com  FAQ . 


कुंभ मेला कब और किस नदी के तट  पर लगता है ? 

 यह कुंभ मेला का आयोजन  12 साल में हर 3 साल के अंतराल पर धार्मिक स्थान पर  किया है।  जैसे -  प्रयागराज  , हरिद्वार , नाशिक ,  उज्जैन क्रमशः।  प्रयागराज में गंगा यमुना सरस्वती के संगम पर ,  हरिद्वार में गंगा के तट  पर और नासिक में गोदावरी के तट  पर , तथा उज्जैन में शिप्रा नदी के तट  पर महा कुंभ मेले का आयोजन होता है।  

मकर संक्रांति के दिन पतंग क्यों उड़ाया जाता  है ? 

 इस दिन पतंग उड़ाने का महत्व यह बताया जाता है कि लोगो पर सूर्य  की रोशनी पड़े और सूर्य की रोशनी के हमारे शरीर  पर पड़ने  से जो  सर्दिओ  में त्वचा सम्बंधित संक्रमण या बीमारी हो जाती है वह ख़त्म हो जाती है 

जो शुरुवाती  सूर्य की किरण होती है  वह हमारे शरीर व  स्वास्थ के लिए अत्यंत लाभदायक  है और यह विटामिन डी का अच्छा श्रोत भी है 

 यह ईस्वर  को धन्यवाद करने का एक तारिका भी है और एक साथ सभी लोग अपनी रंग बिरंगी पतंगों  से आसमान को रंग बिरंगा बना देते हैं जो कि बहुत अच्छा  होता है  है खुशी  प्रकट  करने का भी। 

मकर संक्रांति के दिन का भोगोलिक महत्व क्या है ?

 मकर संक्रांति के भोगोलिक महत्व यह  है कि इस दिन से सूरज दक्षिणी गोलार्ध में अधिकतम दक्षिणांश 23 1/2 डिग्री ( मकर रेखा या दक्षिणायन ) पर  पहुंचकर ,  उत्तर की ओर बढ़ना शुरू कर देता है जिसे उत्तरायण कहते  है या सूरज मकर रेखा से कर्क रेखा की ओर बढ़ना शुरू कर देता है , और इस दिन से उतरी गोलार्द में दिन बड़े व रातें  छोटी होने लगती है।  

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